Premanand Ji Maharaj (Image Credit-Social Media)
Premanand Ji Maharajप्रेमानंद जी महाराज का संदेश: आज के तेज़ रफ्तार जीवन में, जब हर कोई तनाव और चिंताओं से जूझ रहा है, सत्संग और विवेक ही वो प्रकाश हैं जो हमें सही रास्ता दिखाते हैं। संत प्रेमानंद जी के प्रवचनों में यह स्पष्ट होता है कि भजन करना कठिन है, लेकिन उसे अपने जीवन में उतारना और भी चुनौतीपूर्ण है। मन को साधना सबसे बड़ी कठिनाई है। अक्सर हम मंदिर में बैठते हैं या ध्यान करने का प्रयास करते हैं, लेकिन मन भटक जाता है। प्रेमानंद जी का कहना है कि 'बिन सत्संग विवेक न होई, राम कृपा बिन सुलभ न सोई।' इसका अर्थ है कि जब तक सत्संग का सहारा नहीं मिलता, तब तक सही और गलत की पहचान नहीं हो पाती। आइए जानते हैं कि प्रेमानंद जी के बताए गए सूत्रों को अपनाकर हम अपने मन की अशांति को कैसे दूर कर सकते हैं।
सत्संग का महत्व सत्संग से बुद्धि का विकास
हम कितनी भी किताबें पढ़ लें या प्रवचन सुन लें, जब तक हम संतों के साथ सत्संग नहीं करते, तब तक विवेक जागृत नहीं होता। विवेक का अर्थ केवल बुद्धिमत्ता नहीं, बल्कि जीवन को सही दिशा देने वाला ज्ञान है। सत्संग हमें भ्रम और माया के बंधनों से मुक्त करता है। जैसे अंधेरी गली में दीपक जलाने से रास्ता साफ दिखता है, वैसे ही सत्संग का प्रकाश हमारे भीतर की उलझनों को भी दूर करता है। यही कारण है कि कहा जाता है, 'संगत वैसी रंगत वैसी।'
ध्यान में मन को साधने के उपाय ध्यान में मन का भटकना
जब हम पूजा में बैठते हैं, तो मन अक्सर अन्य विचारों में चला जाता है। कभी बच्चों की पढ़ाई की चिंता, कभी कारोबार का हिसाब। प्रेमानंद जी महाराज इसका सरल उपाय बताते हैं। जब भी ध्यान में कोई विचार आए, तो मन में कहें कि यह गलत है, इसे काटो। धीरे-धीरे यह अभ्यास मन को अनुशासित कर देता है। यह कठिन है, लेकिन जैसे शरीर को व्यायाम की आदत डालनी होती है, वैसे ही मन को भी साधना की आदत डालनी चाहिए।
गुरु की कृपा का महत्व गुरु का मार्गदर्शन
किसी भी साधक के लिए गुरु का महत्व सर्वोपरि है। गुरु केवल शास्त्रों की बातें नहीं बताते, बल्कि अपने अनुभव से मार्गदर्शन करते हैं। जैसे अंधेरे कमरे में टॉर्च जलाने से सब कुछ साफ दिखता है, वैसे ही गुरु की कृपा से साधना का मार्ग स्पष्ट होता है।
क्रोध और साधना क्रोध का प्रभाव
प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, क्रोधी व्यक्ति कभी सुखी नहीं हो सकता। क्रोध चित्त को अशांत करता है, जिससे ध्यान में बाधा आती है। इसलिए साधना के मार्ग पर सबसे पहले क्रोध को त्यागना आवश्यक है।
सात्विक आहार का महत्व सात्विक आहार और संयमित जीवन
हमारा आहार हमारे मन को प्रभावित करता है। तामसिक भोजन जैसे शराब और मांसाहार मन में अशांति लाते हैं, जबकि सात्विक भोजन जैसे फल और दूध मन को शांत करते हैं। ऋषि-मुनि हमेशा सात्विक जीवनशैली का पालन करते थे। इसके अलावा, दिनचर्या भी संयमित होनी चाहिए। समय पर सोना, जल्दी उठना और नियमित ध्यान करना मन को स्थिर बनाते हैं।
साधना का असली अर्थ साधना का वास्तविक अर्थ
भजन करना केवल गीत गाना नहीं है। असली भजन वह है जो हमारे व्यवहार में झलके। जब साधना हमारे बोलचाल में मिठास, आचरण में पवित्रता और मन में शांति लाती है, तभी उसका फल मिलता है। प्रेमानंद जी महाराज का संदेश यही है कि साधना केवल मंदिर में पूजा करने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने की कला है। यदि हम क्रोध पर विजय प्राप्त कर लें और मन को अनुशासित करें, तो भजन जीवन का सबसे बड़ा आनंद बन जाएगा।
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